माँ मुझे भी जीना है…”अनसुनी चीख”- A Real Story
“सारिकाआज याद है, ना शाम ४बजे डॉक्टर कीappointment है, टाइम परतैयार हो जाना“, कवितदेवी ने आदेशभरे स्वर मेअपनी बहू सारिकाको कहा! “ठीकहै, मम्मीजी…” कहकर सारिका केदिल की धड़कनऔर भी तेज़हो गयी, क्योकिये पहला मौकानही था, जबडॉक्टर और क्लिनिकके नाम सेउसकी चिंता औरघबराहट बढ़ गयीथी, ये डरपिछले कुछ सप्ताहोसे चल हीरहा था, जबसे प्रेग्नेन्सी रिपोर्टपॉज़िटिव आई थी!
यूँ तो कहनेको और लोगोके लिए येसारिका की दूसरीप्रेग्नेन्सी थी, परअसल मे सारिकाऔर उसकी फॅमिलीवाले ही येजानते थे, कीरिंकी के जनमके बाद येचौथा मौका था, जब सारिका प्रेग्नेंटथी…!
“मम्मीक्या हुआ…क्याइस बार हॉस्पिटलसे मेरा भाईआने वाला है..रिंकी ने मासूमियतसे पूछा? “पतानही बेटा…बसइतना ही कहपाई, सारिका अपनीप्यारी बिटिया से..! अपनेअंदर पनपती नन्हीज़ान की अहसासने सारिका कोखुश करने केबजय दुखी औरचिंतित कर दियाथा, सारिका कोऔर ऐसा होताभी क्यो ना, पिछली बार केहादसो को कैसीभूल सकती थी, वो…यही सोचकर वो पुरानीयादो मे खोगयी!
दो सालपहले की हीतो बात है, जब एक सुबहबड़े उत्साह सेवो अपनी सासके पास आईथी, और बोलीथी “मम्मीजी आज रिपोर्टपॉज़िटिव आई है“, कितने खुश थेवो और सचिन! “अब रिंकी को अकेलापननही लगेगा..जलदही प्यारा भाईया बहन उसेमिल जाएगा! फिरसे माँ बननेकी खुशी नेनया उत्साह भरदिया था, सारिकामे!
“भाई या बहननही सिर्फ़ भाई…” “अरे मम्मीजी ये आपकैसे कह सकतीहै, ये तोभगवान के हाथमे है औरवैसे भी हम२१ वी सदीमे जी रहेहै, क्या फ़र्कपड़ता है, लड़काहो या लड़की?” सारिका ने ऐसेही कहा! “अपनाये भाषण अपनेकॉलेज मे हीदेना, इस घरमे वो हीहोता है, जोमेरा आदेश होताहै” कह करकविता देवी अपनेकमरे मे चलीगयी! सारिका डरसी गयी थी, इस तरह कीबाते सुन कर!
यूँ तो सारिकाजानती थी, कीमम्मीजी और उनकीसारी फ्रेंडस अपनीफॅमिली मे पोताहो ऐसा हीचाहती थी, औररिंकी के पैदाहोने पर भीवो ज़्यादा खुशनही थी, परउन्होने अपनी नाराज़गीकभी इस तरहनही दिखाई थी, पर आज दूसरीप्रेग्नेन्सी रिपोर्ट के पॉज़िटिवआने पर इसतरह का रूख़…उसने आशाभरी नज़रो सेसचिन और अपनेससुरजी की तरफ़देखा और पूछा, “मम्मीजी, ऐसा क्योकह रही है, क्या वज़ह हैइसकी?”
“इस परिवार की यहीपरंपरा है, संध्याऔर उषा भाभीके साथ भीयही हुआ था..” सचिन ने कहा! “कैसा हुआ था…सब कुछजानना चाहती थी, सारिका..पर सचिनऔर पापा जीबिना कुछ बताएही कमरे सेबाहर चले गये!
“समय आने परसब पता चलजाएगा” यही थेसचिन के आखरीशब्द! कुछ परेशान, कुछ घबराई सीसारिका दूसरी बार माँबनने की खुशीठीक तरह सेमाना भी नहीपाई थी..औरपहले तीन महीनोकी सारी तकलीफेझेलते हुए जैसेही १२ सप्ताहपूरे हुए, घरमे एक शामअजीब सा टेन्षनवाला माहौल हुआ!
“मेरीबात हो गयीहै सतीश से, आज शाम क्लिनिकमे और कोईनही है, साराकाम एक हीसिटिंग मे करदेगा” कवितदेवी यही बातदबे स्वर मेसचिन को औरअपने पति कोकह रही थी! यूँ तो सारिकाजानती थी, कीसतीश जी मम्मीजीके दूर केरिश्ते के भाईऔर पेशे सेgynecologist थे, पर आजएक सिटिंग मेवो क्या करनेवाले थे, सारिकासब कुछ जाननाचाहती थी, परकोई नही था, जो उसे सबकुछ बताता कवितदेवी के आदेश पर वो तैयार होकर सतीश जी के क्लिनिक पर पहुचि, साथ मे सिर्फ़ कवितदेवी थी! क्लिनिक मे और कोई नही था, बस सतीश जी और उनकी फ्रेंड radiologist डॉक्टर रंजना, दोनो ने मिल कर उसकी रुटीन सोनोग्राफी की, कुछ संदेहास्पद था, क्लिनिक का माहौल, सारिका का डर बढ़ता जा रहा था!
“आप बाहर वेट करो…मे कविता दीदी से अकेले मे कुछ बात करना चाहता हूँ” डॉक्टर सतीश ने कहा! “ठीक है…” सारिका को लगा शायद रिपोर्ट मे कुछ प्राब्लम है, उसे टेन्षन ना हो, इसलिए डॉक्टर सतीश मम्मी जी से अकेले मे बात करना चाहते है! पर असल मे बात कुछ और ही थी, “सॉरी दीदी, its again a girl child” डॉक्टर सतीश ने कविता देवी को अकेले मे कहा!
“अच्छा, तो तुम्हे पता ही है,..आगे क्या करना है?” “ओके दीदी.. कह कर डॉक्टर सतीश ने आँखो ही आँखो मे नर्स को कुछ instruction दिए, और नर्स ने सब कुछ समझ कर बाहर आकर सारिका को स्ट्रेचर पर लेटने को कहा! “क्या हुआ है मुझे, क्या रिपोर्ट ठीक नही है, सारिका कुछ ठीक से समझती उसके पहले ही नर्स ने अनास्तेसिया देकर सारिका को बेहोश कर दिया, सारिका के आखों के आगे अंधेरा छा गया, और फिर वही हुआ जो हमारे देश मे हज़ारो लड़कियों के साथ होता है, एक माँ के अंदर पनपती नन्ही जान को कुछ ही मिंटो मे बेज़ान कर दिया गया!
“दीदी. everything had done..” डॉक्टर सतीश ने बाहर आकर कविता देवी को कहा! “बस अब आपको सारिका को समझाना होगा” डॉक्टर सतीश ने अपनी चिंता जाहिर की!
“वो खुद ही समझ जाएगी, ये पहली बार तो नही हुआ है, हमारे परिवार मे, बड़ी दोनो बहुए भी अपने आप ही समझ गयी थी…” कविता देवी ने आतमविश्वास से कहाँ! “मेरा बच्चा…कह कर चीख पड़ी सारिका”! होश आते ही होश खो दिया था, सारिका ने…! आखे खुली तो संध्या और उषा भाभी आश्वासन दे रही थी!
“घबरा मत सारिका..ये हमारे साथ भी हुआ था…हाँ दर्द तो बहुत होता है…पर जैसे ही रिपोर्ट मे लड़का दिखेगा, सारा दर्द ख्तम हो जाएगा..मम्मीजी को इस परिवार मे दो बेटियाँ चाहिए ही नही…” दोनो भाभियों ने अपनी आप बीती कह सुनाई! सारिका के पेरो के नीचे की ज़मीन खिसक गयी थी ये सब सुन कर! लगा आज अभी इस परिवार को छोड़ कर बग़ावत कर दे..इस अन्याय को यही ख्तम कर दे…पुलिस को सब कुछ बता दे…पर अपने बूढ़े माँ-पापा की इज़्ज़त और सचींकी बे रूखी ने उसकी हिम्मत तोड़ दी, लगा शायद अब मुझे भी ये परीक्षा बार-बार देनी होगी!
अगले कुछ महीनो बाद ये हादसा फिर दोहराया गया! बार-बार होते अबॉर्षन से टूट गयी थी सारिका शारीरिक और मानसिक रूप से…खून की कमी और severe weakness से सारिका का मन काँप जाता था, प्रेग्नेन्सी के नाम से पर फिर भी परिवारिक दवाबो के चलते कुछ नही कर पाई वो..हर कुछ सहती गयी…
“क्या हुआ सारिका?…” इस बार सचिन की आवाज़ से वर्तमान मे लौट आई सारिका..फिर वो ही सब कुछ होगा…वही डर..वही घबराहट…वही तनाव….आज फिर भारी मन से हॉस्पिटल पहुँची सारिका!
हर बार की तरह सोनोग्राफी हुई..नन्ही सी जान…नन्ही सी धड़कन..छोटे-छोटे हाथ-पैर…और “again it’s a girl child”
इस बार लगा, ये नन्ही सी ज़ान अंदर से कह रही हो…”माँ, मुझे भी जीना है, मुझे भी इस दुनिया मे आना है…मुझे भी हक दो अपने हिस्से की ज़िंदगी…” पर बेबस सारिका कुछ नही कह पाई, कुछ नही कर पाई….एक खामोशी…वही सन्नाटा….वही अंधेरा…और “अलविदा माँ”..की अंदरूनी आवाज़ ने फिर एक अज़न्मी ज़िंदगी को पैदा होने से पहले ही ख्तम कर दिया….!
असल मे ये कहानी एक वास्तविक घटना से प्रेरित होकर लिखी गयी है..यूँ तो कहने को हम २१ वी सदी मे जी रहे है..फिर भी स्त्री भ्रूण हत्या हमारे समाज़ का कड़वा सच है…आज भी हमारे देश मे हज़ारो लड़कियाँ जनम लेने से पहले ही मार दी जाती है..और अफ़सोस की बात तो ये है, इस तरह की घटनाओ मे मुख्य रूप से दूसरी महिलाओ का ही हाथ होता है, एक महिला ही दूसरी महिला की दुश्मन बन जाती है लड़को की चाह मे….बेहद अफ़सोसजनक और दुखद है इस तरह की घटनाए…क्या है आपका विचार, प्लीज़ सांझा कीजिए!