आख़िर क्यो “शादी” ही है, औरतो की ज़िंदगी का सबसे बड़ा सच?
“बहुतबहुत बधाई शुश्रिकोमल नागर को, जिनके कार्यकाल मेहमारे स्टेट नेइतनी एतिहसिक प्रगतीकी है…अभूतपूर्व५ साल काकार्यकाल…और संचालककी इसी घोषणाके साथ पूराहाल तालियों सेगूँज उठा! औरजैसे ही सुश्रीनागर अपना व्यक्त्य्वव्यक्त करने आई, खुशी के आसूआखों मे झिलमिलाउठे! “ये सबआपके साथ औरसहयोग से हीसंभव हुआ है“..स्ंक्षिप्त शब्दो मेउन्होने अपना भाषणसमाप्त किया! आज कारकी तरफ़ लौटतेहुए कोमल कुछथका हुआ सामहसूस कर रहीथी, अनेकानेक उपलब्धियाँथी उनके नाम, कई सारे अवॉर्ड, प्रशस्ति पत्र….पर…
पर मन बहुतडर रहा था..कई सारेसवाल ज़ेहन कोपरेशान कर रहेथे! यूँ तोउम्र के ३८वे बरस मेथी कोमल परफिर भी जबभी नयी जगहपोस्टिंग होती, इसी तरहपरेशान हो जातीथी वो..औरपरेशानी की वजहभी कोई शासकीयया प्रशासनिक नहीथी, वजह थीसामाजिक, यूँ तोएक उच्चधकारी होनेसे समाज मेउनका रुतबा था, पर फिर भीएक महिला होनेके नाते समय–समय परहोता तिरस्कार उसकेमन को आहतकर देता था!
“मेडमजी, ये हैआपका नया घर, सारी सुख–सुविधाएहै, पर फिरभी किसी चीज़की ज़रूरत होतो, बताना..” “ठीकहै दिनेश..तुमजाओ” कहकर कोमलने तुरंत फोनउठाया और सबसेपहले अपनी माँको कॉल कियाऔर फिर बारी–बारी सेअपने छोटे भाईऔर बहन कोभी अपने सकुशलपहुचने की खबरदी..बस इतनाही था कोमलका परिवार. हरबार तो माँसाथ होती थी, पर इस बार खराब तबीयत के चलते कोमल को अकेले ही शिफ्टिंग करनी पड़ी.
..”अरे! पास ही मंदिर है, जाकर भगवान दर्शन कर आती हूँ..नयी शुरुआत के लिए अच्छा रहेगा..”मदिर देख कोमल के मन मे तुरंत विचार आया..पर कुछ ही मिनिटो मे पिछली बार की यादे मन-मस्तिष्क मे कौंध गयी! पिछली बार जो मंदिर मे हुआ था..उसकी कड़वी यादे अभी भी कोमल को समय समय पर परेशान करती रहती थी..
“कोन है ये…” “अरे! बहुत बड़ी अधिकारी है..””और फॅमिली मे कोन-कौन है..” “कुँवारी है..अभी तक शादी नही की, पता नही क्या कारण है..” “कोई अफैयर होगा..या कोई और मामला..” इसी तरह की कई सारी दिल को चुभने वाली बातों को सुनकर वो और माँ बिना देव-दर्शन किए ही घर वापस आ गये थे..इस तरह की औरतो की काना-फूसी को झेलना यूँ तो कोमल की आदत मे था..पर कभी कभी ये कटाक्ष दिल को अंदर से आहत कर देते थे!
असल मे येपहला या अनोखावाक़या नही था, हमेशा से हीकोमल को कईसारे सार्वजनिक स्थानोपर इसी तरहहे कटाक्षो कासामना करना पड़ताथा, कोई उसेबिचारी कहता..तो कोईउसके चरित्र परउंगली उठाता..कुछलोग तो रिश्तेही बताने लगतेऔर सलाह देते..”अभी देरनही हुई हैमेडंजी…बहुत देशकी सेवा करली, अब अपनाघर भी बसालीजिए!
कभी घुस्सा, कभी चिड़चिड़ाहट, तो कभी घबराहटके साथ कोमलकभी सख्ती सेज़वब देती तोकभी चुप्पी कोही अपना हथियारबना लेती..परदिल ही दिलअपनी पर्सनल ज़िंदगीपर उठते सवालोसे उसके दिलकी टीस औरगहरी हो जाती!
“बेटा, अब तू भीशादी कर ले, तूने अपनी सारीज़वाबदारियाँ अच्छे से निभाली है, समयऔर सपना भीअपनी अपनी ज़िंदगीमे अच्छे सेसेट हो गयेहै, बस तेरीही चिंता हैमुझे..मेरे बादतेरा क्या होगा?..हमेशा की तरहचिंता भरे स्वरमे सविता देवीने कहा!
“आज पापा होतेतेरे तो येदिन नही देखनापड़ता…”कह करसविता देवी केसब्र का बाँधटूट गया, “क्यामाँ..फिर वहीबात…” हाँ पापाहोते तो..कहकर कोमल कामन पुरानी दर्दभरो यादों मेखो गया!
कितना खुशहाल था उनकाजीवन और कितनीअविस्मरणीय थी बचपनकी यादें..शहरके जाने–मानेडॉक्टर थे कोमलके पापा रामनागर..शहर मेइज़्ज़त थी, प्रतिष्ठाथी, धन–दौलत…प्यार करने वालीपत्नी और तीनबच्चो को प्यारापरिवार! कोमल सबसेबड़ी थी औरपापा की लाडलीभी..पापा केकई सपने थेकोमल को लेकर..और कोमलकी भी हमेशायही कोशिश रहतीकी वो पापाके हर सपनेको पूरा करें!
“कोमलमुझे तुमसे बहुतउमीदे है..तुम्हेउँचे मुकाम परदेखने का सपनाहै मेरा..” समय–समय परपापा की बातेकोमल को आगेबढ़ने को प्रेरित करती रहती, समय और सपना भी बहुत होनहार थे..अच्छे स्कूल और सारी सुख-सुविधाओ के बीच बड़े मज़े से गुज़र रही थी ज़िंदगी..पर एक दिन के हादसे से इस सुंदर परिवार का हर सपना टूट गया..
“सॉरी मेडम जी, इस भयानक सड़क हादसे से डॉक्टर साहब का देहांत हो गया है..”फोन पर आए इस संदेश ने कोमल और उसके परिवार की सारी खुशिया एक पल मे छीन ली थी..माँ को दिल का दोरा आ गया था, इस सदमे से..१८ साल की कम उम्र मे ही परिवार की मुखिया बन गयी थी कोमल…दो छ्होटे भाई-बहन उनकी पढ़ाई, लिखाई, आर्थिक ज़िमेदारियाँ, बीमार माँ..शायद कोमल की ज़िंदगी उससे बड़ा इम्तिहाँ ले रही थी…
“दीदी..कॉलेज की फीसभरनी है, वरनाअड्मिशन कॅन्सल हो जाएगा..” सपना का फ़ोनआया ही थाकी, समय बोला, “दीदी माँ कीदवाइयाँ ख्तम होगयी है..” एकसाथ २–३ पार्ट टाइम नौकरीकरके कोमल नेपरिवार की आर्थिकज़वाबदारियाँ जैसे–तैसेसंभाल तो लीथी, पर रातके अंधेरे मेपापा की तस्वीरलेकर “पापा आपहमे छोड़ करक्यू चले गये..” कह कर उसकेदिल का दर्दआसू के साथफुट ही जाताथा! पर दूसरेही पल पापाका सपना पूराकरना है..अपनीपढ़ाई भी जारीरखनी है, अओरइसी तरह कीहज़ारो ज़वाबदारियों के चलतेवो अपने आपको फिर सेसभाल लेती औरफिर जुट जातीअपने टूटे हुएपरिवार को संभालनेमे!
इतनी सारी परेशानियोऔर ज़वाबदारिंयो केबीच कोमल कीज़िंदगी बस एकसंघर्ष बन कररह गयी थी, पर उसने हारनही मानी, कभीअपने परिवार कोअपने पापा कीकमी का अहसासनही होने दिया, हर ज़िमेदारी अच्छेसे निभाई! माँका इलाज़, भाई–बहन कीपढ़ाई, उनकी शादीसब कुछ किया..और फिरमेहनत करके पापाका सपना भीपूरा किया..भलेदेर–सबेर हीसही पर कोमलने प्रशासनिक सेवाकी परीक्षा पासकी, और डिप्टीकलेक्टर की पोस्टपर उसकी नियुक्तिभी हो गयी!
“माँ, आज पापा कासपना पुरो होगया…” “हाँ, बेटा..कहकर कोमलको गले लगाकररो पड़ी थीउस दिन सवितादेवी…”
परये सब होते=होते औरइतनी सारी ज़वाब्दारियाँनिभाते निभाते कोमल कोकभी अपनी ज़िंदगी, अपने सपनो केबारे मे सोचनेका समय हीनही मिला..कामऔर परिवार केबीच उलझी १८साल की कोमलकब ३८ वर्षीयसुश्री कोमल नागरबन गयी थी, इसका अंदाज़ा तोकोमल को खुदभी नही था!
हाँकभी–कभी अकेलापनतो लगता था, पर फिर भीएक संतुष्टि थीअपनी ज़वाबदारियो कोअच्छी तरह सेनिभाने की, अपनेपापा के अधूरेसपनो को पूराकरने की..कोईशिकायत नही थीज़िंदगी से..कामकरते करते इतनीप्रतिष्ठा और सम्मानसे पापा कोअसली श्रधंजलि देनेका सुकून था..पर पिछलेकुछ वर्षो सेइस तरह काकटाक्ष और तानेअसहनीय होते जारहे थे!
“क्या हुआमेडम जी, मंदिरनही जाना है?”..दिनेश की आवाज़से कोमल वर्तमानमे आ गयी, समाज की विसंगतियोसे व्व्यथित कोमलज़िंदगी मे इतनाकुछ करने औरपाने हे बादभी सिर्फ़ शादीशुदान होने कीवज़ह से इसमानसिक प्रताड़ना को झेलरही थी, उसकीहर उपलब्धि कोसलाम करने केबजाय लोगो काइस तरह काव्यवहार आज उसेदुखी कर रहाथा!
येकहानी सिर्फ़ कोमलकी ही नहीहै, हमारे समाज़मे कोमल कीतरह ही कईसारी ऐसी लड़कियाँहै, जो अपनीव्यक्तिगत परिस्थितियो के चलतेशादी नही करपाती, पर ह्मारेसमाज़ मे इसेव्यातिगत विषय नमानते हुए इसेकटाक्ष का मुद्दाबना दिया जाताहै!
आख़िरक्यो?, हर लड़कीके लिए विवाहही अंतिम मंज़िलहै, हाँ नयीज़िंदगी की शुरुआतसभी के लिएज़रूरी है, परयदि किसी वज़हसे किसी केसाथ ये संभवनही हो पताहै, तो क्योंनही उसका अपनानिर्णय मान करउसे अपनी ज़िंदगीअपनी तरह सेज़ीने की आज़ादीदी जाती है, क्यो उसका हरसमय तिरस्कार कियाजाता है1 क्यो किसीका भी शादीशुदाहोना, और फिरबच्चे होना, यहातक की लड़कीहै तो लड़काहोना..एक समज़ीकचर्चा का विषयहोते है..क्योज़िंदगी के अन्यक्षेत्रो मे प्रशांसनीयकाम करने केबाद भी कोमलजैसी लड़कियाँ मज़बूरहै, इस प्रताड़नासहने को…
यहीहै हमारे भारतीयसमाज़ का कड़वासच, क्या हैआपका कहना, प्लीज़सांझा कीजिए!
0 Comments
Monika Bhatt
बहुत कड़वे सच को उजागर करती कहानी है कोमल जैसी कई लड़कियां समाज मे इस तरह की उपेक्षा का तिरस्कार का सामना करती है समाज की मानसिकता आधुनिक होने के बाद भी लड़कियो को लेकर महिलाओं को लेकर बदलती नहीं एक पुरुष अगर विवाह न करने का फैसला लेता है तो उसका सम्मान किया जाता है लेकिन अगर स्त्री ने विवाह नहीं किया तो उसके चरित्र पर उंगली उठाई जाएगी या उसमें कमियां गिनाई जाएगी आखिर हर एक इंसान को हक़ है अपनी जिंदगी के फैसले खुद करने का अपने तरीके से जिंदगी जीने का अधिकार है विवाह करना न करना व्यक्तिगत निर्णय है और किसी को अधिकार नहीं की इसमें दखल दे कई बार बहुत बेबसी महसूस होती है दुःख होता है जब समाज बेवजह इस तरह किसी को अपमानित करता है उलाहना देता है लेकिन फिर भी मैं उम्मीद करती हूं की ये सोच बदलेंगी दिशा बदलेगी और भविष्य में महिलाओं के प्रति नजरिया बदलेगा क्योकि सुबह आएगी जरूर
Surbhi Prapanna
सही कहा मोना, ये ही हमारे भारतीय समाज की विसंगति है, जहा बचपन से लेकर बुढ़ापे तक सिर्फ़ औरतो को ही कई तरह की कुरीतियों और बन्धनो का सामना करना पड़ता है, यहा तक की कई बार पढ़ी लिखी महिलाए भी इन सब का हिस्सा होती है, पर शायद समय बदलेगा क्योकि उम्मीद पर ही दुनिया कायम है…