“मेला”…पुरानी यादों का ( A Real Story)
मुझे पता हैआप सभी indiaमे अभी गर्मियोंका लुफ़त लेरहे है औरकुछ हद तकपरेशान भी होरहे है औरयहाँ USA में हमबड़ी बेसब्री सेsummer की शुरुआत का इंतज़ारकर रहे है, ६–७ महीनोतक freezing cold सहने केबाद किसी festival से कम नहीं हैयहाँ गर्मियों कीशुरुआत, और गर्मियोंके शुरू होतेही शुरू होजाती है बच्चोकी डिमांड water park और adventure park जाने की, इन्ही डिमांड्स केचलते एक दिनमेरी ८ सालकी बेटी नेमुझ से पूछा, “mumma, did you had enjoyed rides in your childhood ?
मेंउसे हाँ याना कहती, उसकेपहले ही rides यानी झूलेशब्द सुनते हीमन बचपनकी सुनहरी यादोंमें खो गया| सचमुच अनोखा था वोबचपन और उसकीप्यारी यादें, मध्य प्रदेशके छोटे सेकसबे ( राजगढ़) में कितनाखुशहाल था हमाराबचपन, हाँ आज कीतरह अत्याधुनिक सुख–सुविधाएं तो नहींथी, पर खुलेआसमान के नीचेअपने प्यारे दोस्तों के साथखेलने का मज़ाकुछ और हीथा |
पापाकी बैंक मेंनौकरी थी, औररोज़ ५–६ बजे वोघर आ जायाकरते थे, कितनामज़ा आता था, उनके साथ समयबिताने में, उनकीकहानियॉँ और मम्मीके हाथ कागरमा–गरमा खाना..लगता थाइससे बड़ा कुछऔर सुख नहींहै दुनिया मेंऔर फिर दोस्तोंके साथ पिकनिक…स्कूल भी बड़ेअच्छे होते थे, पढाई शानदार थीपर बिना pressure वाली…और इनसबके बीच सबसेकुछ खास था,तो वो था वर्षमें एक बारलगने वाला “मेला“, दिसंबर की शुरुआतहोते ही बेसब्रीसे इंतज़ार होनेलगता था मेलेका,स्कूल मेंदोस्तों के बीचबस एक हीचर्चा का विषयहोता था, कीमेला कब सेशुरू होगा? इसबार क्या नयाआने वाला है? और इसी तरहकी ढेर सारीplanning …उस ख़ुशीऔर excitement को शबदोमें तो बयांकिया ही नहींजा सकता |
गुलाबीसर्दी में january कीशुरुआत में मेलालगने की शुरुआतहो जाती थी, पहले कुछ–कुछदुकाने, झूलो कासामान…और फिरदेखते ही देखतेपूरा मैदान भरजाता था | आजभी याद है, हमारा स्कूल मेला–मैदान के नज़दीकही हुआ करताथा..और आतेजाते मेले केदुकाने मन नेअद्धभूत तरंगे पैदा करतीथी | पॉपकॉर्न औररंग–बिरंगे खिलोनोकी दुकाने…फिरझूले और sabse आखिरमें टॉकीज औरअन्य मनोरंजक shows ( मिस्टरनटवर लाल, मौतका कुआँ आदि) होते थे, औरइन सभी चीज़ोमें सबसे ज्यादाcraze होता था, झूलोका ( you know rides ???) लकड़ी कापालकी वाला झूला…या डॉलीवाला झूला…याफिर गणेश झूला, सभी बच्चो मेंएक ही होड़होती थी, कीसबसे बड़े झूलोमें बिना डरेकौन बैठेगा?
मेला अच्छी तरह सेजमने के बादकिसी अच्छी सीदोपहर में plan बनताथा, पूरी मित्र– मंडली के साथमेला जाने का…आज भीयाद है मांहमें ( मुझे औरभाई को) १–१ रूपयादेती थी, औरसभी बच्चे लगभगइतने ही पैसेलाते थे, २५–२५ पैसोकी पालकी, कुछदुसरे झूले, औरआखरी में गुल्ले( sugarcane pieces ) और कुछ औरखाने– पिने कीचीज़े लेकर अपनामेला ट्रिप खूबएन्जॉय करते थेहम सब |
और फिर इंतज़ारहोता था, शामकी मेला ट्रिपका, पापा औरउनकी मित्र– मंडलीके साथ मेलाजाने का कुछऔर ही मज़ाहोता था, दोग्रुप होते थे..बड़ो काऔर हम बच्चोका ( बहुत अच्छाfamily circle हुआ करताथा, उन दिनों) और इस ट्रिपकी सबसे शानदारबात होती थी..गरमा–गरमागराडू और इमरतीका नाश्ता..आजभी जब वोस्वाद याद आताहै तो मुहंमें ही नहींआँखों में भीपानी आ जाताहै…वो स्वाद..वो अपनोंका साथ..सचमुचज़िन्दगी की सबसेअमूल्य धरोहर है येप्यारी यादें….
और फिर बरीआती थी, मौतका कुआँ देखनेकी…यूँ तोहर साल हीये शो आताथा मेले में..पर पतानहीं क्या खासबात थी कीहर बार एकनयापन लगता था..बाइक राइडरकी बहादुरी कोसलाम करते हुएहम जाते थेमिस्टर नटवरलाल ( The famous donkey शो..I hope you all remember) की, सबकेमन में एकही घबराहट होतीथी, कही किसीगलत सवाल केजवाब में गधाउनके पास आकरखड़ा न होजाये …और फिरकिसी शाम कोईअच्छी सी मूवीमेले के टाकीजमें देखी जाती..गुलाबी सर्दी मेंइस तरह मूवीदेखने का मज़ाही कुछ औरथा ( आज जबबड़े से बड़ेmutiplex में कई movies देख लीहै, पर वोमज़ा कभी नहींआया)
और आखिर मेंमेले से लौटेसमय शुरू होजाता था मांकी खरीददारी कीडिमांड्स का सिलसिला..”ये कालीनबहुत सस्ता हैऔर अच्छा भी..ले लेतेहै मेला फिरअगले साल आएगा” से लेकर घरके सजावट कीसुन्दर सुन्दर चीज़े…नज़रुरत होते हुएभी मेले केसम्म्मान में अच्छी–खासी शॉपिंगकी जाती..औरपापा भी न– न करते हुएआखिर में सबकुछ दिलवा हीदेते थे…औरइन ढेर सारीमस्तियो के बीचजब मेला समापनकी तिथि घोषितहोती तो सबकामन उदास होजाता..इतनी सारीरंग–बिरंगी यादेंजो देकर जाताथा…ये अनोखामेला..भरे मनसे सब विदाईकर मेले केऔर फिर बेसब्रीसे इंतज़ार करतेआने वाले मेलेका…
“Mumma क्याहुआ? I am asking something angel की आवाज़ सेमें वर्तमान मेंलौट आयी…”हाँबेटा, मैंने भीenjoy की है rides अपने बचपनमें ” बस इतनाही कह पायीमें उसे …परमन में नकेवल पुरानी यादेबल्कि कई सारेप्रश्न भी आगए उनके बचपनको लेकर |
“ कहनेको हम २१सेंचुरी में जीरहे है..कईतरह की तकनिकीउन्नंती हमने करली है ..कईतरह की आधुनिकसुविधाएं है हमारीज़िन्दगी में …पर फिरभी कितना बंधाहुआ है हमारेबच्चो का बचपन..न खुले आकाशमें अपनी मर्ज़ीसे जब तकचाहे तब तकखेलने की छूटहै उन्हें नही पहले कीतरह ढेर सारेदोस्तों का प्यारऔर साथ है…लैपटॉप, Ipad और TV में बंधाऔर सिमटा हैबचपन…पुरानी यादो कोयाद करते हुएलगा एक बारउन्हें भी लेजाऊ उस अतरंगीदुनिया में..उन्हेंभी जीने दूवो आज़ादी औरख़ुशी की दुनिया…आँखे नमहो आयी औरदिल भर आयाये सब सोचकर,,,
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